Saturday, February 9, 2008

सपने


गुडल के फूल सी
अधखुली
लाल आंखों से
रातों को जाग कर

उँगलियों से
सपने बुने थे

रेशमी नीले सपने
सुनहरी पट्टी लगे ......

कुछ दिन
ओढ कर रखा
गुदगुदे
नर्म सपने

अब लाल आंखें
और लाल
हुई जाती हैं

देख कर......
बदरंग हुए सपने

बावरी आँखें
इतना भी
नहीं समझ पातीं.......

ज़िंदगी
उधेड़ कर
दुबारा नहीं बुनी जाती.........

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