Saturday, April 5, 2008

साथ साथ


मंजिल मिल ही जाती है ढूँढने जब निकलते हैं

आइये कुछ दूर हम भी साथ चलते हैं

तुम्हे मैं थाम लूंगा और तुम सहारा मुझे देना

तन्हाई बहुत खलती है पाँव जब भी फिसलते हैं

ये बुज़दिली है की कोई तूफानों से डर जाए

बुलंद हौसले के आगे तो परबत भी पिघलते हैं

कौन कहता है पतंगो को जलती है शमा ' विकास'

अपनी धुन के मतवाले ये अपने आप जलते हैं