Monday, February 18, 2008

कुछ त्रिवेणी


बरसात
उस पहले सावन की याद में
हम फिर भीगे बरसात में
जाने कितना बरसेगा 'बादल मन '
बलिश्त
अनजाना बन गया वो दोस्त मेरा
नज़रें चुराने लगा है मुझसे
बलिश्त भर प्यार क्या मांग लिया

अनपढ़
हाल -ऐ -दिल की तहरीरें चेहरे पे लिखी थी
मेरे दोस्त कर न सके तुम तर्जुमा फिर भी
जुबां -ऐ - इश्क तुम निरे अनपढ़ निकले

तजुर्बा
क्या कहें अब वो हमें पहचानते नहीं
पर आँख बचाने का हुनर हम जानते नहीं
चलो , हमारा इश्क उनके लिए तजुर्बा ही सही

बातें
सर झुका के उन्होंने होंठ अपने बुदबुदाये
मुस्कुरा कर हमने अश्क पलकों में छुपाये
कौन कहता है की हमने बातें नहीं की ?

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